रविवार, 24 जनवरी 2010

बनोगे मेरी अभिव्यक्ति

हां, तुम याद आओगे
आंखों से बरस जाओगे।
जब तपस सी होगी उलझन
झुलसने लगेगा फसल मन
हर्षाने को कण-कण
बदरी बन कर छा जाओगे
हां, तुम याद आओगे।

लगने लगेगी लंबी रात
अंधकार देगा सतत आघात
लाने का स्वर्णिम प्रभात
सूरज-सा तप जाओगे
हां, तुम याद आओगे।

जब जन्म लेगी संवेदना अनूठी
अकुलाएगी अज्ञात अनुभूति
देने को सशक्त अभिव्यक्ति
मेरी कविता बन जाओगे
हां, तुम याद आओगे।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें