सोते- सोते,
कभी रोती है,
कभी हंसती है।
कच्चे दूध सी,
मेरी मासूम चाहत
महकती है।
कभी पेट पर,
कभी छाती पर,
गुदगुदाते हैं
उसके नन्हें पांव।
सच का सूरज,
जब जलाता जिया,
किलकारी बनकर
मेरी मासूम चाहत
बरसती है।
कलेजे के टुकड़े को,
कलेजे से बांधूं।
आंखों के तारे को,
आंखों से निहारूं ।
कुछ ऐसी ही ख्वाहिश,
दिल में कलपती है।
मेरी मासूम सी चाहत
आंसू बन भटकती है।
आईआईटीयन चंद्रशेखर बने स्वामी पशुपतिनाथ
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सैयद शहरोज़ क़मर *की क़मर से *
सनातन परंपरा की अलौकिकता के महाकुंभ सिंहस्थ उज्जैन में देश-दुनिया की
विभिन्न रंगत अकार ले रही है। श्रद्ध...
7 वर्ष पहले