गुरुवार, 8 अप्रैल 2010

शुक्र है कि कम हो रहा फैमिली सीक्रेट का कहर

वे इंटरनेट पर चैट करती हैं। उनके कपड़े आधुनिक हैं। अंग्रेजी तो इनकी जबान से ऐसे निकलती है, जैसे मातृभाषा ही हो। विदेश जाना इनके लिए अपने शहर के किसी मार्केट जाने जैसा ही सहज है। आधुनिकता की चकाचौंध में इनकी छवि बेहद मोहक लगती है। पर क्या वाकई ये परम्परागत महिलाओं से अधिक स्वतंत्र हैं। चर्चा का सन्दर्भ सानिया मिर्जा व आयशा सिद्दिकी के प्रकरण से है। टीवी-अखबारों में इन आधुनिकाओं के पूरे प्रकरण को देख सुन कर एक बार फिर इसी निष्कर्ष पर पहुंचना पड़ा कि परम्परा में महिलाओं की स्थिति जितनी आधारहीन है, उतना ही बनावटी है आधुनिकता के तमाम तामझाम। महिलाएं परम्परा में भी देह तक सीमित करार दी गई थीं और आज भी स्थिति अधिक बदली नहीं। फिर चाहे अपने फिगर के कारण आत्ममुग्धा सानिया हो या फिर मोटापे के कारण हीनभाव से ग्रस्त आयशा।
टीवी चैनलों के कैमरे के सामने बेशर्मी से मुस्कुराते हुए जब शोएब आयशा को आपा तक का संबोधन दे रहे थे और बगल में खड़ी सानिया भी उनकी हां में हां मिलाते हुए मीडिया से ही पूछ रही थी कि आपा से तलाक कैसा तो एकबरगी से रूचिका कांड के डीजीपी राठौड़ और उनकी पत्नी का ध्यान आ गया। अदालत से निकलते हुए कुछ ऐसी अंदाज में मुस्कुराते हुए राठौड़ साहब ने भी 14 वर्षीय छोटी सी बच्ची को लूज मॉरल्स की कहा था और तब भी सती सावित्री की फेम में बंधी उनकी पत्नी ने पति की हां में हां कुछ इसी अंदाज में मिलायी थी। सानिया खेल से आपने जितनी प्रतिष्ठा और मोहब्बत हासिल की है, यकीन मानिए उससे कई गुना अधिक की हकदार हो जातीं, जब आयशा के खेमे में खड़े होकर शोएब के लिए सवाल खड़े करतीं।
इस पूरे प्रकरण में यदि कुछ सकारात्मक दिखा तो वह यह कि समाज में फैमिली सीक्रेट या गोपन की जंजीर जरुर कुछ कमजोर पड़ी है। आयशा को जो कुछ भी सफलता हासिल हुई है वह नारीवाद के प्रमुख सूत्र पर्सनल इज पॉलिटिकल के कारण ही। उन्होंने परिवार की इज्जत के नाम पर चुप रहने की बजाय जमाने के सामने अपनी आवाज बुलंद की। फैमिली सीक्रेट व गोपन की जंजीर को तोड़ा। आज वे कम से कम इस मामले में जरुर हजारों आयशा के लिए प्रेरणा बन गई हैं और यकीनन उनकी यह उपलब्धि सानिया के ड्रॉइंग रूम से सजे ट्रॉफियों से कहीं अधिक कीमती है।

9 टिप्‍पणियां:

  1. बिलकुल सही लिखा है मैडम आपने. समाज आज हमारा इसी अंधी दौड़ में हैं

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  2. bahut badiya likha hai chetnaji...bhartiy patniyan pati ko PARMESHWAR manti hain, hamari saniya ne bhi shoaib ki han main han milakar unhen pati parmeshwar bana diya, halanki abhi tak ve patni nahin bani hain.

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  3. हाँ शाइना आहूजा प्रकरण में भी उनकी पत्नी ने बिना सच जाने हुए आनन फानन में प्रेस कांफ्रेंस कर डाली थी कि मेरे पति पर लगाए गए आरोप बेबयनियाद हैं। दरअसल नारी का व्यक्तिगत स्वार्थ, वर्ग विशेष के प्रति उसकी सहानुभूति से कहीं ऊपर चला जाता है। बिना उनके सहयोग से पुरुष अपनी हेकड़ी हर जगह नहीं दिखला सकते।

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  4. पढे-लिखे होने, अंग्रेजी बोलने से ही आत्‍मसम्‍मान नहीं आता। मुझे तो आज तक कोई नहीं मिला जो अपनों को छोड़कर परायों के साथ खड़ा हो गया हो, सिद्धान्‍त के नाम पर। कम से कम नारी तो कभी नहीं। धारा में बहना और बात है और बगावत करना और। यह सच है कि आयशा ने आवाज उठायी, उसकी हिम्‍मत को दाद देनी ही चाहिए। लेकिन सानिया तो कुछ देख ही नहीं पा रही है।

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  5. आज वे कम से कम इस मामले में जरुर हजारों आयशा के लिए प्रेरणा बन गई हैं -सो तो है.

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  6. bahut acha lekh...jaane insaan ko kya ho gaya...

    http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/

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  7. आपने इस मामले पर बहुत ही सन्तुलित विचार रखे है

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