शनिवार, 30 जनवरी 2010

यहां कहां सृजन

हो रही तब्दील पत्थर में,
जिसमें न स्पन्दन है,
और न सृजन!
चिडिय़ों की चहचहाहट
सी किलकारी भी
पड़ोस के पेड़ों तक सीमित,
सूना मेरा आंगन!
चरम पर है
फूट कर बहने की चाहत
सहूं असीम पीड़ा का सुख
गंूजे उसका रुदन!
कपोल फूटने का स्वप्न लिए
झुकती हैं आंखें,
पर वहां फिर न सृजन
न स्पन्दन!
बस बहती हैं आंखें
बिना सींचे कोई फसल
भटकता है पानी
निरुद्देश्य, निरर्थक।
और फिर यह पानी
आग में हो जाता तब्दील
बचती है बस
राख और धुआं,
यहां कहां सृजन
कैसा स्पन्दन!

यहां कहां सृजन

गुरुवार, 28 जनवरी 2010

बस नजरों भर आकाश

भगाने को
मन का अंधकार,
काफी है एक
टिमटिमाता दीया!
पलटकर एक नजर
देखना उनका
जोड़ जाता है जिया!
मु_ी भर सकून,
नजरो भर आकाश,
आंचल में लंू समेट
बस इतना दो प्यार!
टूटे नहीं लय-छंद,
दास्तां नहीं यह
हार-जीत की,
चाहत बस इतनी सी
जीवन में
कविता रहे बरकरार!

कुछ पाती एक शाम के नाम

हां, मैं उदास हंू,
तन्हाइयों के पास हंू।
दूर तक
विस्तार है,
अंतहीन
आकार है,
चांद-तारों बिना
मैं आकाश हंू।
हां, मैं उदास हंू।
बंजर
जमीन है,
नभ
नीर हीन है,
बिखरे बीज का
मैं प्रयास हंू।
हां, मैं उदास हंू।

रविवार, 24 जनवरी 2010

आज अरसे बाद फिर
पिघला कुछ मन में
लाओ, कलम दो
कविता उमड़ती है।

भावों के बादलों से
आकुल-व्याकुल मन है
कोई स्नेहिल आंचल दो
आंखें बरसती हैं।

मन ही नहीं चाहता पढऩा
मन की मौन भाषा
कौन सुनेगा इसकी
आंखें कुछ कहती हैं।

बनोगे मेरी अभिव्यक्ति

हां, तुम याद आओगे
आंखों से बरस जाओगे।
जब तपस सी होगी उलझन
झुलसने लगेगा फसल मन
हर्षाने को कण-कण
बदरी बन कर छा जाओगे
हां, तुम याद आओगे।

लगने लगेगी लंबी रात
अंधकार देगा सतत आघात
लाने का स्वर्णिम प्रभात
सूरज-सा तप जाओगे
हां, तुम याद आओगे।

जब जन्म लेगी संवेदना अनूठी
अकुलाएगी अज्ञात अनुभूति
देने को सशक्त अभिव्यक्ति
मेरी कविता बन जाओगे
हां, तुम याद आओगे।

शनिवार, 2 जनवरी 2010

आज फिर हो गयी

जिंदगी से मुलाकात

फिज़ाओं ने हाल पूछा

लम्हों ने की बात!

गुनगुनी धूप ने

jee bher निहारा मुझे

छू कर मेरा बदन

हवा ने सराहा मुझे

उद्वेलित हुई भावना

पकड़ कर मेरा हाथ!

आज फिर हो गयी

ज़िन्दगी से मुलाकात!

बादलों की ओट से

छिप-छिप कर झांकता,

बावरा है सूरज क्या

देख मुझको नाचता.

उमंग के गर्भ में

ले रहा आकार गीत,

उल्लास को धीरज कहाँ

सुना रहा सोहर संगीत।

लौट बचपन की गलियों में

मन सोच रहा खुराफात।

आज फिर हो गयी

ज़िन्दगी से मुलाकात.