शायद दोष
अक्षरों का है
जो खुद को
संजो नहीं पाए
कोरे कागजों पर।
या फिर
कागजों ने ही
की है खता
कि खुद में समेट नहीं पाए
अक्षरों को।
पर सच है कि
खड़े हैं दोनों
समय के कटघरे में
कि एक सुन्दर कृति
रह गई अजन्मी।
आईआईटीयन चंद्रशेखर बने स्वामी पशुपतिनाथ
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सैयद शहरोज़ क़मर *की क़मर से *
सनातन परंपरा की अलौकिकता के महाकुंभ सिंहस्थ उज्जैन में देश-दुनिया की
विभिन्न रंगत अकार ले रही है। श्रद्ध...
8 वर्ष पहले
nice
जवाब देंहटाएंअच्छी पंक्तियां हैं।
जवाब देंहटाएंपर सच है कि
जवाब देंहटाएंखड़े हैं दोनों
समय के कटघरे में
कि एक सुन्दर कृति
रह गई अजन्मी।
दोनो स्थितियों में यह एक रचना की भ्रूण हत्या है
कटघरा लाजिमी है
सुन्दर रचना
akshar ho yaa kagaz dono kaa istmaal dimaagee haalat par nirbhar hotaa he.../
जवाब देंहटाएंsoch he, achhi rachna he../ saadhuvaad.
खड़े हैं दोनों
जवाब देंहटाएंसमय के कटघरे में
कि एक सुन्दर कृति
रह गई अजन्मी।
अति संवेदनशील रचना , सुन्दर अभिव्यक्ति और मन मस्तिष्क को झकझोरता प्रभाव ! बहुत खूब !
सुन्दर भाव,सुन्दर रचना!
जवाब देंहटाएंकुंवर जी,
वाकई सुंदर कृति, लेकिन अजन्मी नहीं जन्मी। कागज पर आकार लेकर पाठकों के समक्ष अभिव्यक्त हो रही है। कमाल की रचना। बधाई।
जवाब देंहटाएंसमय के कटघरे में
जवाब देंहटाएंकि एक सुन्दर कृति
रह गई अजन्मी।
अति संवेदनशील रचना , सुन्दर अभिव्यक्ति और मन मस्तिष्क को झकझोरता प्रभाव ! बहुत खूब !
THANKS CHETNA JI
जवाब देंहटाएंMERA HOSLA BADANE KE LIYE
UMEEND HAI AAGE BHI HUMARA HOSLA BADHAEGI..
बेहद संवेदनशील रचना।
जवाब देंहटाएंbahut acha
जवाब देंहटाएंhttp://kavyawani.blogspot.com/
http://kavyawani.blogspot.com/
shekhar kumawat
...बहुत सुन्दर!!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति .....
जवाब देंहटाएंमर जाती हैं/बहुत सी कविताएं/कविता बनने से पहले।
जवाब देंहटाएंइन अनकथ शब्द शहीदों पर आपने कविता लिखी-साधुवाद!
-suresh baranwal/subani25@gmail.com