सोमवार, 28 दिसंबर 2009

प्रतीक्षारत थी

सदियों से

पत्थेर के

अंतस में,

तुम झरना

बनकर आये

फूटकर

मैं बही

बन लहर लहर।

कालजयी

रात थी,

हुई अनोखी

बात थी,

स्मरणीय

इतिहास बना

वह सुनहरा पहर।

हो तुझमें समाहित

अंश-अंश आह्लादित ,

मंजिल के संग-संग

हुआ प्रारंभ सफ़र.

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