सोते- सोते,
कभी रोती है,
कभी हंसती है।
कच्चे दूध सी,
मेरी मासूम चाहत
महकती है।
कभी पेट पर,
कभी छाती पर,
गुदगुदाते हैं
उसके नन्हें पांव।
सच का सूरज,
जब जलाता जिया,
किलकारी बनकर
मेरी मासूम चाहत
बरसती है।
कलेजे के टुकड़े को,
कलेजे से बांधूं।
आंखों के तारे को,
आंखों से निहारूं ।
कुछ ऐसी ही ख्वाहिश,
दिल में कलपती है।
मेरी मासूम सी चाहत
आंसू बन भटकती है।
आईआईटीयन चंद्रशेखर बने स्वामी पशुपतिनाथ
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सैयद शहरोज़ क़मर *की क़मर से *
सनातन परंपरा की अलौकिकता के महाकुंभ सिंहस्थ उज्जैन में देश-दुनिया की
विभिन्न रंगत अकार ले रही है। श्रद्ध...
8 वर्ष पहले
बहुत खूब .....एक नन्हे से बच्चे की पूरी चंचलता से पूर्ण है ये रचना .
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना!!
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर । मासूमियत से भरी रचना । बधाई ।
जवाब देंहटाएंशानदार!
जवाब देंहटाएंkHoooooBsoooooorat aBhivyakTi...
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना। ऐसा लग रहा है जैसे आपने अपने बच्चे के उपर लिखा हो। मगर बेहतरीन प्रयास है। जारी रखें।
जवाब देंहटाएंसुनील पाण्डेय
इलाहाबाद।
09953090154