शनिवार, 2 जनवरी 2010

आज फिर हो गयी

जिंदगी से मुलाकात

फिज़ाओं ने हाल पूछा

लम्हों ने की बात!

गुनगुनी धूप ने

jee bher निहारा मुझे

छू कर मेरा बदन

हवा ने सराहा मुझे

उद्वेलित हुई भावना

पकड़ कर मेरा हाथ!

आज फिर हो गयी

ज़िन्दगी से मुलाकात!

बादलों की ओट से

छिप-छिप कर झांकता,

बावरा है सूरज क्या

देख मुझको नाचता.

उमंग के गर्भ में

ले रहा आकार गीत,

उल्लास को धीरज कहाँ

सुना रहा सोहर संगीत।

लौट बचपन की गलियों में

मन सोच रहा खुराफात।

आज फिर हो गयी

ज़िन्दगी से मुलाकात.

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