आज फिर हो गयी
जिंदगी से मुलाकात
फिज़ाओं ने हाल पूछा
लम्हों ने की बात!
गुनगुनी धूप ने
jee bher निहारा मुझे
छू कर मेरा बदन
हवा ने सराहा मुझे
उद्वेलित हुई भावना
पकड़ कर मेरा हाथ!
आज फिर हो गयी
ज़िन्दगी से मुलाकात!
बादलों की ओट से
छिप-छिप कर झांकता,
बावरा है सूरज क्या
देख मुझको नाचता.
उमंग के गर्भ में
ले रहा आकार गीत,
उल्लास को धीरज कहाँ
सुना रहा सोहर संगीत।
लौट बचपन की गलियों में
मन सोच रहा खुराफात।
आज फिर हो गयी
ज़िन्दगी से मुलाकात.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें