रविवार, 24 जनवरी 2010

आज अरसे बाद फिर
पिघला कुछ मन में
लाओ, कलम दो
कविता उमड़ती है।

भावों के बादलों से
आकुल-व्याकुल मन है
कोई स्नेहिल आंचल दो
आंखें बरसती हैं।

मन ही नहीं चाहता पढऩा
मन की मौन भाषा
कौन सुनेगा इसकी
आंखें कुछ कहती हैं।

1 टिप्पणी:

  1. मन की मौन भाषा
    कौन सुनेगा इसकी
    आंखें कुछ कहती हैं ।
    सुन्दर अभिव्यक्ति !

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