हां, मैं उदास हंू,
तन्हाइयों के पास हंू।
दूर तक
विस्तार है,
अंतहीन
आकार है,
चांद-तारों बिना
मैं आकाश हंू।
हां, मैं उदास हंू।
बंजर
जमीन है,
नभ
नीर हीन है,
बिखरे बीज का
मैं प्रयास हंू।
हां, मैं उदास हंू।
आईआईटीयन चंद्रशेखर बने स्वामी पशुपतिनाथ
-
सैयद शहरोज़ क़मर *की क़मर से *
सनातन परंपरा की अलौकिकता के महाकुंभ सिंहस्थ उज्जैन में देश-दुनिया की
विभिन्न रंगत अकार ले रही है। श्रद्ध...
8 वर्ष पहले
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें