हां, तुम याद आओगे
आंखों से बरस जाओगे।
जब तपस सी होगी उलझन
झुलसने लगेगा फसल मन
हर्षाने को कण-कण
बदरी बन कर छा जाओगे
हां, तुम याद आओगे।
लगने लगेगी लंबी रात
अंधकार देगा सतत आघात
लाने का स्वर्णिम प्रभात
सूरज-सा तप जाओगे
हां, तुम याद आओगे।
जब जन्म लेगी संवेदना अनूठी
अकुलाएगी अज्ञात अनुभूति
देने को सशक्त अभिव्यक्ति
मेरी कविता बन जाओगे
हां, तुम याद आओगे।
आईआईटीयन चंद्रशेखर बने स्वामी पशुपतिनाथ
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सैयद शहरोज़ क़मर *की क़मर से *
सनातन परंपरा की अलौकिकता के महाकुंभ सिंहस्थ उज्जैन में देश-दुनिया की
विभिन्न रंगत अकार ले रही है। श्रद्ध...
8 वर्ष पहले
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