आज अरसे बाद फिर
पिघला कुछ मन में
लाओ, कलम दो
कविता उमड़ती है।
भावों के बादलों से
आकुल-व्याकुल मन है
कोई स्नेहिल आंचल दो
आंखें बरसती हैं।
मन ही नहीं चाहता पढऩा
मन की मौन भाषा
कौन सुनेगा इसकी
आंखें कुछ कहती हैं।
आईआईटीयन चंद्रशेखर बने स्वामी पशुपतिनाथ
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सैयद शहरोज़ क़मर *की क़मर से *
सनातन परंपरा की अलौकिकता के महाकुंभ सिंहस्थ उज्जैन में देश-दुनिया की
विभिन्न रंगत अकार ले रही है। श्रद्ध...
7 वर्ष पहले
मन की मौन भाषा
जवाब देंहटाएंकौन सुनेगा इसकी
आंखें कुछ कहती हैं ।
सुन्दर अभिव्यक्ति !