गुरुवार, 28 जनवरी 2010

बस नजरों भर आकाश

भगाने को
मन का अंधकार,
काफी है एक
टिमटिमाता दीया!
पलटकर एक नजर
देखना उनका
जोड़ जाता है जिया!
मु_ी भर सकून,
नजरो भर आकाश,
आंचल में लंू समेट
बस इतना दो प्यार!
टूटे नहीं लय-छंद,
दास्तां नहीं यह
हार-जीत की,
चाहत बस इतनी सी
जीवन में
कविता रहे बरकरार!

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